अमरीकी सैनिक अपने तथा कथित हितों की रक्षा के लिए अमरीका से हज़ारों मील दूर फार्स की खाड़ी में तैनात है ताकि अमरीका के लिए खतरों को अमरीका से दूर रखें।
सन 1823 में बनी मुनरो रणनीति के अनुसार संयुक्त राज्य अमरीका , पूरे अमरीका महाद्वीप विशेषकर लेटिन अमरीका को अपना बैकयार्ड या पिछला आंगन समझता है। अमरीका में यह रणनीति युरोप के खिलाफ बनायी गयी थी और इसी रणनीति के अंतर्गत अमरीका ने युरोपीय देशों के कब्ज़े को खत्म करने में सभी लेटिन अमरीकी देशों की मदद की।
अमरीका की इस रणनीति में लोभ भी था अमरीका ने युरोपीय देशों को लेटिन अमरीका बाहर निकालने में इस लिए मदद की थी ताकि वह स्वंय उनकी जगह ले ले और इन देशों का दोहन करके अपने आर्थिक हितों की पूर्ति करे।
उस समय से अब तक अमरीका ने जैसा भी संभव हुआ, लेटिन अमरीका पर हमेशा अपनी पकड़ मज़बूत रखने की कोशिश की है इसके लिए उसने परोक्ष और अपरोक्ष रूप से भूमिका निभाने में तनिक भी संकोच नहीं किया है।
अमरीकियों को आर्थिक हितों की रक्षा के लिए राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल बहुत अच्छी तरह से आ गया था और इसी लिए उन्होंने कभी राजनीतिक और कभी सैन्य शक्ति का प्रयोग करके लेटिन अमरीका से दूसरों को दूर रखा।
जब युरोपीय देश अन्य देशों पर क़ब्ज़ा करने में ही व्यस्त थे अमरीकी, मैक्यावेली नीति के आधार पर यह सच्चाई समझ चुके थे कि किसी देश सीधा कब्ज़ा किया जाए, बल्कि इसके लिए उसी देश के अपने एजेन्टों को सत्ता में पहुचां कर उनका समर्थन करना ही काफी होता है।
विश्वास के साथ यह कहा जा सकता है कि जिन अमरीकी नेताओं ने अन्य देशों पर सीधे क़ब्ज़े की प्राचीनी युरोपीय नीति का सहारा लिया उन सब को अपमान जनक हार का सामना करना पड़ा।
अमरीकियों ने 19 सदी में लेटिन अमरीका पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के बाद के महासागर के दूसरी ओर अपना प्रभाव बढ़ाने की योजना बनायी और फिर पहले और दूसरे विश्व युद्ध में भाग लेकर अमरीका ने अपनी यह इच्छा भी पूरी कर ली।
इसी तरह अमरीकियों की समझ में यह भी आ गया था कि संयुक्त राष्ट्र संघ जैसा एक अंतरराष्ट्रीय संगठन बना कर वह दुनिया पर वर्चस्व की अपनी इच्छा को कानूनी रूप दे सकते हैं। यही वजह है कि जब भी आप किसी अमरीकी नेता या अधिकारी से पूछें कि वह विश्व के अमुक क्षेत्र या देश में क्यों उपस्थित हैं तो वह जवाब देंगे इस उपस्थिति का उद्देश्य, अमरीकी हितों की रक्षा है।
सवाल यह है कि वह अमरीकी हित क्या हैं जिनकी सुरक्षा के लिए अमरीकी सैनिक, अपने देश से दसियों हज़ार किलोमीटर दूर इलाक़ों और देशों में तैनात रहते हैं?
बात बिल्कुल साफ है यह हित अस्ल में आर्थिक हैं और लेटिन अमरीका वास्तव में अमरीका की दुखती है और ईरान पिछले दो दशकों से बार बार अमरीका की इस दुखती रग पर हाथ रख देता है और अमरीका बिलबिला जाता है। लेटिन अमरीका में ईरान की उपस्थिति अमरीका की दुखती रग पर हाथ रखने जैसा है। खास तौर पर वेनज़ोएला में जिसे अमरीका में बहुत से राजनेता, अमरीका के लिए ईंधन का स्ट्रेटजिक भंडार कहते हैं।
हालिया दिनों में खबर आयी कि ईरान ने पेट्रोल से भरे कई जहाज़ वेनज़ोएला के लिए रवाना किये हैं जिसके बाद अमरीका ने एलान किया कि वह ईरानी जहाज़ों पर नज़र रखने के लिए अपने युद्धपोत उसी इलाक़े में भेज रहा है।
ईरान और वेनज़ोएला दोनों की अमरीकी प्रतिबंधों का शिकार हैं लेकिन दोनों में से किसी पर भी अंतरराष्ट्रीय या संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से प्रतिबंध नहीं है इस लिए वह एक दूसरे से व्यापार कर सकते हैं और कोई भी कानून इन दोनों देशों को एक दूसरे के साथ व्यापार से नहीं रोक सकता।
अमरीका ने पेट्रोल से भरे जहाज़ वेनज़ोएला भेज कर यह एलान कर दिया है कि वह फार्स की खाड़ी और पश्चिमी एशिया में अमरीका द्वारा पैदा की गयी चुनौतियों को कैरेबियन सागर और अमरीका के आंगन तक ले जाने का इरादा रखते हैं।
ईरान और वेनज़ोएला के बेहद घनिष्ट संबंधों पर अमरीका ने हमेशा हंगामा मचाया है। वेनज़ोएल तेल से मालामाल देश है लेकिन अमरीका ने उसे तेल शोधन में पीछे ही रखा ताकि वह हमेशा कच्चा तेल ही बेचता रहे। वेनज़ोएला की तरह ईरान के अमरीका पीछे नहीं रख पाया और ईरानी इंजीनियरों ने पिछले कई दशको की मेहनत के बाद ईरान को इस हद तक आगे पहुंचा दिया है कि वह देश की ज़रूरत के अलावा देशों देशों को भी पेट्रोल निर्यात करके और आज दुनिया का बड़े टैंकरो में गिना जाने वाला एक विशालकाय आयल टैंकर ईरान से पेट्रोल लेकर वेनज़ोएला की ओर बढ़ रहा है और अमरीका धमकी दे रहा है।
एक साल पहले की ही बात है अमरीकियों ने अपने ब्रिटिश मित्रों से कहा कि वह सीरिया जाने वाले एक ईरानी तेल वाहक जहाज़ को रोक लें लेकिन ब्रिटेन ने बड़ी हैरत से देखा कि ईरान ने भी उसका एक आयल टैंकर रोक कर जवाब दे दिया। दुनिया में किसी भी टीकाकार ने यह अनुमान नहीं लगाया था कि ईरान में इतना साहस हो जाएगा कि वह बूढ़े साम्राज्य को इस तरह से पटखनी देकर चारो खाने चित कर देगा।
ब्रिटेन ने मजबूर होकर ईरानी तेल वाहक जहाज़ को छोड़ दिया लेकिन ईरानियों ने तब जब उनके जहाज़ ने सीरिया पहुंच कर तेल खाली करके ईरान के समुद्र में वापसी नहीं कर ली तब तक ब्रिटेन के जहाज़ को नहीं छोड़ा ताकि पूरी दुनिया जान ले कि सोए शेर को छेड़ने का अंजाम क्या होता है?
ईरानियों ने इसी तरह यह भी साबित किया है कि उन्हें बहुत अच्छी तरह से मालूम है कि अमरीका और ब्रिटेन की कमज़ोर रग कहां है? और अगर ईरान से भिड़े तो ईरानी उस जगह वार करेगा जहां उन्हें सब से ज़्यादा दर्द होगा।
ईरान ने वेनज़ोएला के लिए अपना तेल वाहक जहाज़ भेज कर अमरीका के लिए बहुत बड़ी चुनौती पैदा कर दी है। अब अगर अमरीका ईरानी जहाज़ों को वेनज़ोएला पहुंचने देता है तो लेटिन अमरीका में उनका दबदबा कमज़ोर पड़ जाएगा और अगर ईरानी जहाज़ों को रोकने की हिम्मत करता है तो फिर उसे यकीन है कि ईरान भी फार्स की खाड़ी और ओमान सागर में उसके जहाज़ो के साथ वही करेगा जिनकी इस क्षेत्र में काफी आवाजाही है। इस लिए ईरान बड़ी आसानी से अपने एक एक जहाज़ के बदले अमरीका के कई कई जहाज़ रोक सकता है। कोरोना से जूझ रहे अमरीका के लिए यह बड़ा झटका होगा। Q.A. साभार, स्पूतनिक न्यूज़ एजेन्सी